|
मिर्च भारत
की प्रमुख मसाला
फसल है| वर्तमान
में भारत में 7,92000
हेक्टेयर में मिर्च
की खेती की जा रही
है| जिसमे 12,23000 टन उत्पादन
प्राप्त होता है|
(वर्ष 2010-2011), भारत में
आंध्र प्रदेश,
कर्नाटक, महाराष्ट्र,
उड़ीसा, तमिलनाडु,
मध्य प्रदेश, पश्चिम
बंगाल तथा राजस्थान
प्रमुख मिर्च उत्पादक
राज्य हैं | जिनसे
कुल उत्पादन का
80 प्रतिशत भाग प्राप्त
होता है | बड़वानी
जिले में मिर्च
के अंतर्गत कुल
क्षेत्रफल 17050 हेक्टेयर
तथा उत्पादन 77,6200
टन (हरी मिर्च ), 40,362
टन (लाल मिर्च ) प्राप्त
होती है (वर्ष 2012-2013
)
|
जलवायु और मृदा
|
मिर्च की खेती
विविध प्रकार की
मिट्टियों मे जिसमे
की कार्बनिक पदार्थ
पर्याप्त हो एवं
जल निकास की उचित
सुविधा हो, मे सफलतापूर्वक
की जा सकती है।
मिर्च की फसल जलभराव
वाली स्थिति सहन
नही कर पाती है।
यद्यपि मिर्च को
pH 6.5—8.00 वाली मिट्टी
मे भी (वर्टीसोल्स)
मे भी उगाया जा
सकता है |
मिर्च की खेती
के लिये 15 - 35 डिग्री
सेल्सियस तापमान
तथा गर्म आर्द
जलवायु उपयुक्त
होती है। तथा फसल
अवधि के 130 - 150 दिन के
अवधि मे पाला नही
पडना चाहिये।
|
मिर्च की उन्नत
किस्में
|
काशी अनमोल
(उपज 250 क्वि. / हे.), काशी
विश्वनाथ (उपज
220 क्वि./ हे.), जवाहर
मिर्च - 283 (उपज 80 क्वि.
/ हे हरी मिर्च.) जवाहर
मिर्च -218 (उपज 18-20 क्वि.
/ हे सूखी मिर्च.)
अर्का सुफल (उपज
250 क्वि. / हे.) तथा संकर
किस्म काशी अर्ली
(उपज 300-350 क्वि. / हे.),
काषी सुर्ख या
काशी हरिता (उपज
300 क्वि. / हे.) का चयन
करें। पब्लिक सेक्टर
की एचपीएच-1900, 2680, उजाला
तथा यूएस-611, 720 संकर
किस्में की खेती
की जा रही है।
|
मिर्च की पौध तैयार
करना तथा नर्सरी
प्रबंधन
|
 |
मिर्च की पौध
तैयार करने के
लिए ऐसे स्थान
का चुनाव करें
जहाँ पर पर्याप्त
मात्रा में धूप
आती हो तथा बीजो
की बुवाई 3 गुणा
1 मीटर आकार की भूमि
से 20 सेमी ऊँची उठी
क्यारी में करें।
मिर्च की पौधषाला
की तैयारी के समय
2-3 टोकरी वर्मी कंपोस्ट
या पूर्णतया सड़ी
गोबर खाद 50 ग्राम
फोटेट दवा / क्यारी
मिट्टी में मिलाऐं।
बुवाई के 1 दिन पूर्व
कार्बन्डाजिम
दवा 1.5 ग्राम/ली. पानी
की दर से क्यारी
में टोहा करे।
अगले दिन क्यारी
में 5 सेमी दूरी
पर 0.5-1 सेमी गहरी नालियाँ
बनाकर बीज बुवाई
करें।
|
बीज की मात्रा
- मिर्च की ओ.पी.
किस्मों के 500 ग्राम
तथा संकर (हायब्रिड)
किस्मों के 200-225 ग्राम
बीज की मात्रा
एक हेक्टेयर क्षेत्र
की नर्सरी तैयार
करने के लिए पर्याप्त
होती है।
रोपाई की
तकनीक एवं समय
- मिर्च की रोपाई
वर्षा, शरद, ग्रीष्म
तीनों मौसम मे
की जा सकती है।
परन्तु मिर्च की
मुख्य फसल खरीफ
(जून-अक्टू.) मे तैयार
की जाती है। जिसकी
रोपाई जून.-जूलाई
मे, शरद ऋतु की फसल
की रोपाई सितम्बर-अक्टूबर
तथा ग्रीष्म कालीन
फसल की रोपाई फर-मार्च
में की जाती है।
पोषक तत्व
प्रबंधन तकनीक
- मिर्च की फसल
मे उर्वकों का
प्रयोग मृदा परीक्षण
के आधार पर करे।
सामन्यतः एक हेक्टेयर
क्षेत्रफल मे 200-250
क्वि गोबर की पूर्णतः
सडी हुयी खाद या
50 क्वि. वर्मीकंपोस्ट
खेत की तैयारी
के समय मिलायें।
नत्रजन 120-150 किलों,
फास्फोरस 60 किलो
तथा पोटाष 80 किलो
का प्रयोग करे।
|
मिर्च
में मल्चिंग के
प्रयोग की तकनीक
-
|
मिर्च फसल की
आधुनिक खेती में
सिंचाई के लिए
ड्रिप पद्धति लगाई
जा रही है तथा खरपतवार
नियंत्रण के लिए
30 माइक्रोन मोटाई
वाली अल्ट्रावॉयलेट
रोधी प्लास्टिक
मल्चिंग शीट का
प्रयोग किया जाता
है | जिससे खरपतवार
प्रबंधन के साथ
साथ सिंचाई जल
की मात्रा भी कम
रहती है |
|
मिर्च
में फर्टीगेशन
तकनीक द्वारा पोषक
तत्व प्रबंधन -
|
मिर्च के पौधों
जिनको फरवरी में
उठी हुई क्यारी
पर लगाया गया हो
ड्रिप सिंचाई व्यवस्था
का उपयोग करे तथा
जल विलेय उर्वरको
जैसे 19:19:19 को सिंचाई
जल के साथ ड्रिप
में देने से उर्वरक
की बचत के साथ साथ
उसकी उपयोग क्षमता
में भी वृद्धि
होती है तथा पौधों
को आवश्यकतानुसार
एवं शीघ्र पोषक
तत्व उपलब्ध होने
से उपज तथा गुणवत्ता
दोनों में वृद्धि
होती है |
|
मिर्च
में पादप वृद्धि
हार्मोन्स का प्रयोग
|
मिर्च की फसल
में प्लैनोफिक्स
10 पी पी एम का पुष्पन
के समय तथा उसके
3 सप्ताह बाद छिड़काव
करने से शाखाओं
की संख्या में
वृद्धि होती है
एवं फल अधिक लगते
हैं | तथा रोपाई
के 18 एवं 43 दिन के
बाद ट्राई केटेनॉल
१ पी पी एम की ड्रेन्चिंग
करने से पौधों
की अच्छी वृद्धि
होती है
जिब्रेलिक एसिड
10-100 पी पी एम सांद्रता
को घोल के फल लगने
के बाद छिड़काव
करने से फल ज्यादा
लगते हैं |
मार्केटिंग
- बड़वानी से
हरी एवं लाल मिर्च
का निर्यात सुदूर
क्षेत्र मुंबई,
पुणे, दिल्ली एवं
अन्य क्षेत्रों
को किया जा रहा
है
|
मिर्च
के महत्वपूर्ण
कीट एवं प्रबंधन
तकनीक
|
कीट
|
प्रमुख लक्षण
|
रोकथाम / नियंत्रण
के उपाय
|
थ्रिप्स
|
वैज्ञानिक
भाषा मे इसे सिटरोथ्रिटस
डोरसेलिस हुड कहते
है। छोटी अवस्था
मे ही कीट पौधों
की पत्तियों एवं
अन्य मुलायम भागों
से रस चूसते है
जिसके कारण पत्तियां
उपर की ओर मुड कर
नाव के समान हो
जाती है।
|
1. बुवाई के पूर्व
थायोमिथम्जाम
5 ग्राम प्रति किलो
बीज दर से बीजोचार
करे।
2. नीम बीज अर्क का
4 प्रतिशत का छिडकाव
करें।
3. रासायनिक नियंत्रण
के अंतर्गत फिप्रोनिल
5 प्रतिशत एस.सी.
1.5 मि. ली. 1 ली. पानी
मे मिला कर छिडकाव
करें।
4. एसिटामिप्रिड
0.2 ग्रा. 1 ली. या इमिडक्लोप्रिड
0.3 ग्रा. 1 ली. या थायोमिथम्जाम
0.3 ग्र्रा.1 ली. पानी
में मिलाकर छिडकाव
करें।
|
सफ़ेद मक्खी
|
इस कीट का वैज्ञानिक
नाम बेमिसिया तवेकाई
है | जिसके शिशु
एवं वयस्क पत्तियों
की निचली सतह पर
चिपक कर रस चूसते
हैं | जिसकी पत्तियां
नीचे तरफ मुड़ जाती
हैं |
|
1. कीट की सतत निगरानी
कर तथा संख्या
के आधार पर डाईमिथएट
की 2 मि.ली. मात्रा
1 पानी मिलकर छिड़काव
करें |
2. अधिक प्रकोप की
स्थिति में थायमेथाइसम
25 डब्लू जी की 5 ग्राम
मात्रा 15 ली. पानी
में मिलकर छिड़काव
करें |
|
माइट
|
कीट का वैज्ञानिक
नाम - हेमीटारयोनेमसलाटस
बैंक है। यह बहुत
ही छोटे कीट होते
है जो पत्तियों
की सतह से रस चूसते
है जिसम पत्तियां
नीचे की ओर मुड
जाती है।
|
1. नीम की निबोंली
के सत का 4 प्रतिशत
का छिडकाव करे।
2. डायोकोफाल 2.5 मि.ली.
या ओमाइट 3 मि.ली.
/ ली. पानी मे मिलाकर
छिडकाव करें।
|
|
मिर्च
के महत्वपूर्ण
रोग एवं प्रबंधन
तकनीक
|
|
रोग
प्रमुख लक्षण
|
रोकथाम / नियंत्रण
के उपाय
|
डेम्पिंग ऑफ़
आर्द्रगलन
|
इस रोग का कारण
पीथियम एफिजडरमेटम,
फाइटोफ्थोरा स्पी.
फफूंद जिसम नर्सरी
में पौधा भूमि
की सतह के पास से
गलकर गिर जाता
है।
|
1. मिर्च की नर्सरी
उठी हुयी क्यारी
पद्धति से तैयार
करे जिसम जल निकास
की उचित व्यवस्था
हो।
2. बिजोचार कार्बेन्डाजिम
1 ग्रा.दवा 1 किलो
बिज से करें।
|
एन्थे्रक्लोज
|
कोलेटोट्राइकम
कैप्सीकी नामक
फफूंद से होने
वाला अतिव्यापक
एवं महत्वपूर्ण
रोग है। विकसित
पौधों पर शाखाओं
का कोमल शीर्ष
भाग ऊपर से नीचे
की ओर सूखना प्रारम्भ
होता है।
|
1. फसल चक्र अपनाएं
तथा स्वस्थ व प्रमाणित
बीज बोये बुवाई
पूर्व बिजोंचार
अवश्य करें।
2. रोग का प्रारंभिक
अवस्था मे ही लाइटक्स
50, अइथेन 45, के 0. 25 प्रतिशत
धोल का 7 दिन अंतराल
पर अवश्यकता अनूसार
छिडकाव करें।
|
जीवाणु जम्लानी
(बैक्टीरियलविल्ट)
|
इस रोग का कारण
स्यूडोमोनस सोलेनेसियेरम
नमक जीवाणु है
| शिमला मिर्च, टमाटर
तथा बैगन में इसका
अधिक प्रकोप होता
है |
|
पौध रोपण पूर्व
बोरडेक्स मिश्रण
के
1 घोल या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड
3 ग्राम दवा 1 ली. पानी
में घोलकर मृदा
उपचार अवश्य करें
या टोह करें
ट्राइकोडर्मा
विरिडी या हरजीयनम
4 ग्राम और मेटलेक्सिल
6 ग्राम प्रति किलो
बीज की दर से उपचारित
करें
|
पर्ण कुंचन
|
यह रोग विषाणु
के कारण होता है
जो कि तंबाकूपर्ण
कुंचन विषाणु से
होता है। रोग के
कारण पौधें की
पत्तियां छोटी
होकर मुड जाती
है तथा पौधा बोना
हो जाता है यह रोग
सफेद मक्खी कीट
के कारण एक दूसरे
पौधे पर फैलता
है
|
1. नर्सरी मे रोगी
पौधौं को समय-समय
पर हटाते रहे।
तथा स्वस्थ पौधौं
का ही रोपण करे।
2. रसचूसक कीटो के
नियंत्रण हेतू
अनुशंसित दवाओं
का प्रयोग करे
।
|
|
मिर्च
में खरपतवार प्रबंधन
|
सामान्यतः
मिर्च मे पहली
निंदाई 20-25 तथा दूसरी
निंदाई 35-40 दिन पश्चात
करें या डोरा या
कोलपा चलायें।
हाथ से निदाई या
डोरा कोलपा को
ही प्राथमिकता
दे। जिससे खरपतवार
नियंत्रण के साथ
साथ मृदा नमी का
भी संरक्षण होता
है। मल्चिंग का
प्रयोग करें।
उपज / उत्पादन
(क्वि./हे .)- वैज्ञानिक विधि
से उन्नत किस्मों
से 20-25 क्वि. तथा संकर
किस्मों से 30-40 क्वि.
उत्पादन प्राप्त
होता है।
मिर्च का
भण्डारण -
हरी मिर्च के फलों
को 7-10 से. तापमान तथा
90-95 प्रतिशत आर्द्रता
पर 14-21 दिन तक भंण्डारीत
किया जा सकता है
। भण्डारण हवादार
वेग मे करे । लाल
मिर्च को 3-10 दिन तक
सूर्य की तैज धुप
मे सुखा कर 10 प्रतिशत
नमी पर भण्डारण
करे ।
|
मिर्च
की खेती पर होने
वाले लागत लाभ
का विवरण प्रति
हेक्टेयर
|
विवरण
|
उन्नत किस्म
|
संकर किस्म
|
कुल लागत
|
53090
|
100662
|
उत्पादन (क्वि./हे.)
|
150
|
300
|
विक्रय (८००
रु. प्रति क्वि.)
|
120000
|
240000
|
लाभ लागत अनुपात
|
2.30
|
2.50
|
प्रति कि.ग्रा.
उत्पादन लागत (रूपये
/किलो )
|
3.50
|
3.30
|
शुद्ध लाभ (रूपये
में )
|
66910
|
139338
|
|
मिर्च
की उत्पादकता वृद्धि
हेतु महत्वपूर्ण
सुझाव
|
|
|
 |
मिर्च की उन्नत
किस्मो काशी अनमोल
(उपज 250 क्वि./हे.), काशी
विश्वनाथ (उपज
220 क्वि./हे.), जवाहर
मिर्च - 218 (उपज 18-20 क्वि./हे.
सूखी मिर्च), अर्का
सुफल (उपज 250 क्वि./हे.)
तथा संकर किस्म
काशी अर्ली (उपज
300-350 क्वि./हे.), काशी
सुर्ख या काशी
हरिता (उपज 300 क्वि./हे.)
का चयन करें
|
मिर्च की नर्सरी
उठी हुई क्यारी
में कीट अवरोधी
नेट के अंदर तैयार
करें तथा नर्सरी
में बीजोपचार के
पश्चात ही बीज
बोयें | खेत में
रोपण 20 से.मी. उठी
हुई मेड पर करें
|
मिर्च की फसल
में खाद एवं उर्वरकों
का संतुलित मात्रा
में प्रयोग करें
(120-150 H: 60 P2 O5 : 80 K2 O Kg./Ha.) तथा
जल विलेय उर्वरक
(19:19:19) का पत्तियों
पर छिड़काव करें
|
मिर्च में खरपतवार
नियंत्रण हेतु
डोरा कोल्पा चलायें
| मल्चिंग का प्रयोग
करें | मिर्च में
वायरस वाहक कीटों
थ्रिप्स एफिड माइट्स
सफ़ेद मक्खी का
समय पर नियंत्रण
करें
|
|
|