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रागी (मडुआ) उत्पादन की उन्नत कृषि तकनीकी-- |
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रागी में कैल्षियम की मात्रा सर्वाधिक पायी जाती है जिसका उपयोग करने पर हड्डियां मजबूत होती है। रागी बच्चों एवं बड़ों के लिये उत्तम आहार हो सकता है। प्रोटीन, वसा, रेषा, व कार्वोहाइड्रेट्स इन फसलों में प्रचुर मात्रा में पाये जाते है। महत्वपूर्ण विटामिन्स जैसे थायमीन, रिवोफ्लेविन, नियासिन एवं आवश्यक अमीनों अम्ल की प्रचुर मात्रा पायी जाती है जोकि विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के लिये आवश्यक होते है। रागी युक्त आहार कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाला होता है। कैल्षियम व अन्य खनिज तत्वों की प्रचुर मात्रा होने के कारण ओस्टियोपोरोसिस से संबंधित बीमारियों तथा बच्चों के आहार (बेबी फुड) हेतु विशेष रूप से लाभदायक होता है। |
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भूमि की तैयारीः |
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पूर्व फसल की कटाई के पष्चात् आवश्यक तानुसार ग्रीष्म ऋतु में एक या दो गहरी जुताई करें एवं खेत से फसलों एवं खरपतवार के अवषेष एकत्रिक करके नष्ट कर दें। मानसून प्रारम्भ होते ही खेत की एक या दो जुताई करके पाटा लगाकर समतल करें। |
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बीज, बीजदर एवं बोने का उचित समय:- |
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बीज का चुनाव मृदा की किस्म के आधार पर करें। जहां तक संभव हो प्रमाणित बीज का प्रयोग करें। यदि किसान स्वयं का बीज उपयोग में लाता है तो बोआई पूर्व बीज साफ करके फफूंदनाषक दवा (कार्वेन्डाजिम/कार्वोक्सिन/क्लोरोथेलोनिल) से उपचारित करके बोयें। रागी की सीधी बोआई अथवा रोपा पद्धति से बोआई की जाती है। सीधी बोआई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई मध्य तक मानसून वर्षा होने पर की जाती है। छिंटवा विधि या कतारों में बोनी की जाती है। कतार में बोआई करने हेतु बीज दर 8 से 10 किलो प्रति हेक्टेयर एवं छिंटवा पद्धति से बोआई करने पर बीज दर 12-15 किलो प्रति हेक्टेयर रखते है। कतार पद्धति में दो कतारों के बीच की दूरी 22.5 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखे। रोपाई के लिये नर्सरी में बीज जून के मध्य से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक डाल देना चाहिये। एक हेक्टेयर खेत में रोपाई के लिये बीज की मात्रा 4 से 5 कि.ग्राम लगती है एवं 25 से 30 दिन की पौध होने पर रोपाई करनी चाहिये। रोपाई के समय कतार से कतार व पौधे से पौधे की दूरी क्रमषः 22.5 से.मी. व 10 से.मी. होनी चाहिये। |
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उन्नतषील किस्में - |
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रागी की
विभिन्न अवधि वाली
निम्न किस्मों
को मध्यप्रदेष
के लिये अनुषंसित
किया गया है।
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खाद एवं उर्वरक का प्रयोग :- |
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मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग सर्वोत्तम होता है। असिंचित खेती के लिये 40 किलो नत्रजन व 40 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से अनुषंसित है। नजजन की आधी मात्रा व फास्फोरस की पूरी मात्रा बोआई पूर्व खेत में डाल दें तथा नत्रजन की शेष मात्रा पौध अंकुरण के 3 सप्ताह बाद प्रथम निदाई के उपरांत समान रूप से डालें। गोवर अथवा कम्पोस्ट खाद (100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) का उपयोग अच्छी उपज के लिये लाभदायक पाया गया है। जैविक खाद एजोस्पाइरिलम ब्रेसीलेन्स एवं एस्परजिलस अवामूरी से बीजोपचार 25 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से लाभप्रद पाया गया है। |
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अन्तःसस्य क्रियाएं :- |
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रागी की फसल को बोआई के बाद प्रथम 45 दिन तक खरपतवारों से मुक्त रखना आवश्यक है अन्यथा उपज में भारी गिरावट आ जाती है। अतः हाथ से एक निदाई करे अथवा बुआई या रोपाई के 3 सप्ताह के अंदर 2, 4 डी. सोडियम साल्ट (80 प्रतिषत) की एक कि.ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से चैड़ी पत्ती वाले खरपतवार नष्ट किये जा सकते है। बालियां निकलने से पूर्व एक और निंदाई करें। |
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फसल पद्धति:- रागी की 8 कतारों के बाद अरहर की दो कतार बोना लाभदायक पाया गया है। |
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पौध संरक्षण |
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(ब) बालियों की सूड़ी:- इस कीट का प्रकोप बालियों में दाने बनने के समय होता है। भूरे रंग की रोयेंदार इल्लियां रागी की बंधी बालियों को नुकसान पहुंचाती है जिसके फलस्वरूप दाने कम व छोटे बनते है।
रोकथाम:-
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