परिचय
मध्यप्रदेश की जलवायु एवं भूमि सूर्यमुखी की खेती के लिए उपयुक्त है। प्रदेश के मालवा निमाड़ क्षेत्र में जहां वर्षा 30 इंच से कम होती है, में इसकी लागत खरीफ की फसल के रूप में ली जाती है। निमाड़ क्षेत्र में यह मूंगफली, मूंग, कपास आदि फसल के साथ उगाई जा सकती है। पिछेती खरीफ फसल के रूप में आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में उगाई जा सकती है। सूर्यमुखी के बीज में 42 - 48 प्रतिशत खाद्य तेल होता है। इसका तेल उच्च रक्तचाप एवं हृदय रोगियों के लिए लाभकारी है।
मध्यप्रदेश में सूरजमुखी:-
क्र. | वर्ष | |||||
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2002-2003 | 2007-2008 | 2012-2013 | ||||
क्षेत्रफल(हे.) | उत्पादकता (किग्रा/हे.) | क्षेत्रफल(हे.) | उत्पादकता (किग्रा/हे.) | क्षेत्रफल(हे.) | उत्पादकता (किग्रा/हे.) | |
1. | - | - | 191000 | 765 | - | - |
प्रमुख उत्पादक जिले/क्षेत्र - मालवा निमाड़ क्षेत्र
भूमि की तैयारी-
ये फसलें प्रायः हर एक प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है। जिस भूमि में अन्य कोई धान्य फसल उगाना संभव नही होता वहां भी ये फसलें सफलता पूर्वक उगाई जा सकती हैं। उतार-चढाव वाली, कम जल धारण क्षमता वाली, उथली सतह वाली आदि कमजोर किस्म में ये फसलें अधिकतर उगाई जा रही है। हल्की भूमि में जिसमें पानी का निकास अच्छा हो इनकी खेती के लिये उपयुक्त होती है। बहुत अच्छा जल निकास होने पर लघु धान्य फसलें प्रायः सभी प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है।भूमि की तैयारी के लिये गर्मी की जुताई करें एवं वर्षा होने पर पुनः खेत की जुताई करें या बखर चलायें जिससे मिट्टी अच्छी तरह से भुरभुरी हो जावें।
उपयुक्त किस्में:
कृषि जलवायु क्षेत्र:- 30 इंच से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में।
क्र. | किस्म | उपज | अवधि | विशेष गुण |
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1. | मार्डन | 6-8 क्वि./हे. | 80-90 दिन |
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2. | बी.एस.एच.-1 | 10-15 क्वि./हे. | 90-95दिन |
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3. | एम.एस.एच. - | 17 15-18 क्वि./हे. | 90-100दिन |
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4. | एम.एस.एफ.एस. -8 | 15-18क्वि./हे. | 90-100दिन |
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5. | एस.एच.एफ.एच.-1 | 15-20क्वि./हे. | 90-95दिन |
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6. | एम.एस.एफ.एच.-4 | 20-30क्वि./हे. | 90-95दिन |
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7. | ज्वालामुखी | 30-35 क्वि./हे. | 85-90दिन |
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8. | ई.सी. 68415 | 8-10 क्वि./हे. | 110-115दिन |
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9. | सूर्या | 8-10 क्वि./हे. | 90-100 दिन |
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बुवाई प्रबंधन -
बीजोपचार -
जैव उर्वरक का उपयोग -
पोषक तत्व प्रबंधन -
नींदा प्रबंधन -
अ. बुआई के पूर्व
क्र. | दवा का नाम | दवा की व्यापारिक मात्रा/हे. | उपयोग का समय | उपयोग करने की विधि |
1. | एलाक्लोर | 1.5 किग्रा | बुवाई के बाद पर अंकुरण से पूर्व | 750 से 800 ली पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें। |
ब. खड़ी फसल में - | ||||
क्र. | दवा का नाम | दवा की व्यापारिक मात्रा/हे. | उपयोग का समय | उपयोग करने की विधि |
1. | क्यूजैलोफाप | 50 ग्रा. | सक्रिय तत्व 2 से 4 पत्ती की अवस्था पर | 750 से 800 ली पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें। |
2. | एमेजामेथाबेन्ज | 75-100 ग्रा. | सक्रिय तत्व 4 से 8 पत्ती की अवस्था पर | 750 से 800 ली पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें। |
रोग प्रबंधन -
क्र. | रोग का नाम | लक्षण | नियंत्रण हेतु अनुशंशित दवा | दवा की व्यापारिक मात्रा/हे. | उपयोग करने का समय एवं विधि |
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1. | काले धब्बोका रोग (अल्टनेकरयाब्लाईट) | 15-20 प्रतिशत तक खरीफ के मौसम में हानि पहुँचा सकती है। आरम्भ में पौधों के निचले पत्तों पर हल्के काले गोल अंडाकार धब्बे बनते हैं जिनका आकर 0.2 - 5 मि.मी. तक होता है। बाद में ये धब्बे बढ़ जाते तथा पत्ते झुलस कर गिर जाते हैं। ऐसे पौधे कमजोर पड़ जाते हैं तथा फूल का आकार भी छोटा हो जाता है। | एम - 45 | 1250 - 1500 ग्राम | 10 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव बीमारी शुरू होते ही करें । |
![]() जे.टी-55 |
![]() टी.के.जी-306 |
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2. | फूल गलन (हैटराट) | यह इस फसल की प्रमुख बीमारीहै। आरम्भ में फूल के पिछले भाग पर डंडीके पास हल्केभूरेरंग का धब्बाबनताहै। यह धब्बाआकारमें बढ़ जाताहै तथा फूल को गला देताहै। कभी - कभी फूल की डंडीभी गल जातीहै तथा फूल टूट कर लटक जाताहै। ऐसे फूलों में दानेनहींबनते। | एम - 45 या कापरऑक्सिक्लोराइड | 1250 - 1500ग्राम | 2 छिड़काव फूल आने पर 15 दिन के अंतराल पर करें। |
![]() टी.के.जी-308 |
![]() जे.टी.एस-5 |
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3. | जड़ तथा तना गलन | यह बीमारीफसल में किसीभी अवस्थापर आ सकती है, परन्तु फूलों में दाने बनते समय अधिक आती है। रोग ग्रस्त पौधों की जड़ें गली तथा नर्महो जाती है तथा तना 4 इंच से 6 इंच तक कला पड़ जाताहै। ऐसे पौधे कभी -कभी जमीन के पास से टूट कर गिर जाते हैं, रोग ग्रस्त पौधे सुख जाते हैं। | थाइरम या केप्टान (फंफूंदनाशक) | 3 ग्रा./किग्रा | बीज बीजोपचार करें व इस रोग से बचाव के लिए भूमि में समुचित मात्रा में नमी रखें। |
4. | झुलसा रोग | पौधे झुलस जाते हैं। | मैटालेक्सिन | 4 ग्रा./किग्रा | बीज बीजोपचार करें व अच्छे जल निकास की व्यवस्था करें। फसल चक्र अपनाएं एवं रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें। |
कीट प्रबंधन -
क्र. | कीट का नाम | लक्षण | नियंत्रण हेतु अनुशंशित दवा | दवा की व्यापारिक मात्रा/हे. |
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1. | कटुआसुण्डी | अंकुरण के पश्चात व बाद तक भी पौधों को जमीन की सतह के पास से कटकर नष्ट कर देती हैं। | मिथाइल पैराथियान | 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्रा.प्रति हेक्टेअर की दर से भुरकाव करें। |
![]() |
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2. | पत्ते कुतरने वाली लट | दो तीन प्रकार की पत्ते कुतरने वाली लटों (तम्बाकू केटर पिलर , बिहार हेयरी केटर पिलर, ग्रीन केटर पिलर) का प्रकोप देखा गया है। | डायमिथोएट 30 ई.सी. | 875 मि.ली. का प्रति हेक्टेअर |
3. | तना फली छेदक | इसकी सुंडियां कोमल पत्तों को काटकर व फूलों में छेड़ करके खा जाती हैं। | मोनोक्रोटोफास 36 डब्लू.एस.सी | एक लीटर प्रति हेक्टेअर |
कटाई एवं गहाई -
कटाई:-
गहाईः-
उपज एवं भंडारण क्षमता -
उपज - देरी से पकने वाली 8 से 10 क्विं./हे. एवं मध्यम 15 से 20 क्विं./हे.
भंडारण क्षमता -
अधिक उपज प्राप्त करने हेतु प्रमुख बिंदु -
आर्थिक आय व्यय की गणना
फसल प्रक्रियाएं | कार्य | लागत (रू.) |
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भूमि की तैयारी | श्रमिक | 600 |
ट्रेक्टर | 1500 | |
बैल | 500 | |
खाद | खाद | 4000 |
जैवउर्वरक | पी.एस.बी. | 200 |
एजोटोबेक्टर | 200 | |
उर्वरक | यूरिया | 2400 |
डी.ए.पी. | 4800 | |
बीज | बीज | 4000 |
बुवाई | मजदूरी | 600 |
ट्रेक्टर | 1200 | |
गैपफिलिंग | 1000 | |
अंतराशस्य क्रियाएं | मजदूरी | 1500 |
बैल | 1500 | |
उर्वरक अनुप्रयोग | मजदूरी | 1500 |
निंदाई गुड़ाई | 3000 | |
सिंचाई | सिंचाई मजदूरी | 2000 |
सिंचाई लागत | 2000 | |
कीटनाशक | कार्बेन्डाजिम | 800 |
क्लोरोपाइरीफाॅस | 600 | |
इमिडाक्लोप्रिड | 1000 | |
कटाई | मजदूरी | 5000 |
कुल लागत( रू./क्विं) | 39900 | |
कुल लागत पर 12 प्रतिशत आकस्मिक व्यय | 4788 | |
कुल लागत पर 10 प्रतिशत रखवाली कीमत | 3990 | |
कृषि कार्य की कुल लागत (रू.) | 48678 | |
उपज (क्विं/हे.) | 25 | |
बाजारभाव(रू./क्विं) | 4000 | |
उत्पाद की कुल कीमत (रू.) | 100000 | |
प्रति हे.कुल बचत (रू.) | 51322 | |
बी.सी.अनुपात | 2.05 |